Shri Ram Ayodhya: वशिष्ठ ने क्यों रखा दशरथ पुत्र का नाम राम?

Shri Ram Ayodhya | क्या वशिष्ठ जी ने गलतफहमी में रखा दशरथ के पुत्र का नाम रामचन्द्र?

Shri Ram Ayodhya | आज के समय में आध्यात्मिक क्षेत्र में भ्रम और अज्ञान का बोलबाला है। लाखों कथावाचक बिना शास्त्रीय आधार के जनता को गुमराह कर रहे हैं, खासकर भगवान शिव, विष्णु और राम जैसे विषयों पर। इस बीच, संत रामपाल जी महाराज शास्त्रों के प्रमाणों के साथ सत्य को उजागर करते हैं। 

यह लेख ऋषि वशिष्ठ के पुरोहित कार्य, उनके द्वारा राजा दशरथ के पुत्रों के नामकरण और ब्रह्मा जी के अधूरे ज्ञान के कारण उत्पन्न भ्रम पर केंद्रित है। इस लेख में आपको रामचरितमानस, श्रीमद्देवीभागवत पुराण, गीता और सूक्ष्म वेद के आधार पर यह स्पष्ट किया जाएगा कि वास्तविक राम कौन है और वशिष्ठ जी ने किस भ्रम के कारण दशरथ पुत्र का नाम राम रखा था?

पुरोहित कार्य अत्यंत नीचा कर्म है: ऋषि वशिष्ठ

Shri Ram Ayodhya: ऋषि वशिष्ठ राजा दशरथ के कुलगुरु थे और उनके धार्मिक अनुष्ठानों, जैसे बच्चों के जन्म, नामकरण, विवाह का शुभ समय निर्धारण और मृत्यु के बाद कर्मकांड आदि में सहायता करते थे। लेकिन, रामचरित मानस के उत्तरकांड, दोहा 47 चौपाई 3 में वशिष्ठ जी स्वयं कहते हैं:  

महिमा अमिति बेद नहिं जाना। मैं केहि भाँति कहउँ भगवाना।।

उपरोहित्य कर्म अति मंदा। बेद पुरान सुमृति कर निंदा।।

अनुवाद: हे भगवन्! आपकी महिमा की सीमा नहीं है, उसे वेद भी नहीं जानते। फिर मैं किस प्रकार कह सकता हूँ? पुरोहिती का कर्म (पेशा) बहुत ही नीचा है। वेद, पुराण और स्मृति सभी इसकी निन्दा करते हैं।

Shri Ram Ayodhya: अर्थात वशिष्ठ जी पुरोहित के कार्य को नीचा कर्म यानि बुरा कर्म मानते थे, क्योंकि वे वेद पढ़ते थे और वेदों में कर्मकांडों को करने का कहीं आदेश नहीं है। फिर भी, उनके पिता ब्रह्मा जी ने उन्हें यह कार्य करने के लिए प्रेरित किया, यह कहकर कि सूर्यवंश में ब्रह्म परमात्मा अवतार लेंगे, जिससे वशिष्ठ को उनके दर्शन, यश और पुण्य प्राप्त होगा। जिसका प्रमाण रामचरित मानस, उत्तरकांड, दोहा 47 चौपाई 4 में पढ़ें:

जब न लेउँ मैं तब बिधि मोही। कहा लाभ आगें सुत तोही॥

परमातमा ब्रह्म नर रूपा। होइहि रघुकुल भूषन भूपा॥

अनुवाद: जब मैं उसे (सूर्यवंश की पुरोहिती का काम) नहीं लेता था, तब ब्रह्माजी ने मुझे कहा था-हे पुत्र! इससे तुमको आगे चलकर बहुत लाभ होगा। स्वयं ब्रह्म परमात्मा मनुष्य रूप धारण कर रघुकुल के भूषण राजा होंगे।

अर्थात विष्णु जी को ब्रह्मा जी ने ब्रह्म परमात्मा मान रखा था। अब यहाँ प्रश्न उठता है: क्या ब्रह्मा जी का यह विश्वास सही था?

Shri Ram Ayodhya: ब्रह्मा जी का अधूरा ज्ञान

ब्रह्मा जी, विष्णु जी को पूर्ण परमात्मा मानते थे। श्रीमद्देवीभागवत के तीसरे स्कन्ध अध्याय 1-3 में नारद जी द्वारा व्यास जी को बताया गया कि जब उन्होंने ब्रह्मा जी से पूछा कि सृष्टि का रचयिता कौन है, तो ब्रह्मा जी ने कहा कि उन्हें स्वयं नहीं पता कि वे कहाँ से प्रकट हुए। 

तथा श्रीमद्देवीभागवत के प्रथम स्कंध के अध्याय 4 में प्रमाण है:

“एक बार श्री ब्रह्मा जी ने श्री विष्णु जी को महान तप करते हुए देखकर प्रश्न किया आप किस देवता की आराधना में ध्यान मग्न हैं। मुझे असीम आश्चर्य तो यह हो रहा है कि आप देवेश्वर एवं सारे संसार के शासक होते हुए भी समाधि लगाए बैठे हैं। आप सर्व समर्थ पुरुष से बढ़कर कौन विशिष्ट है?” 

यह भी पढ़ें: किसे है द्वादशाक्षर मंत्र का ज्ञान?

Shri Ram Ayodhya: ब्रह्मा जी के विनीत वचन सुनकर भगवान श्री हरि उनसे कहने लगे, 

“ब्रह्मन्! मैं भगवती अद्या शक्ति यानि देवी दुर्गा का ध्यान तप करके किया करता हूँ। ब्रह्मा जी! मेरी जानकारी में इन भगवती शक्ति से बढ़कर दूसरे कोई देवता नहीं हैं।”

पाठकों, ब्रह्मा जी तथा विष्णु जी के ज्ञान की असलियत आपके सामने है जिसमें ब्रह्मा जी तो विष्णु जी को परमात्मा बता रहे हैं और स्वयं विष्णु जी ने अपने से अन्य समर्थ शक्ति देवी दुर्गा को बताया है।

देवी दुर्गा भी पूर्ण परमात्मा नहीं!

श्रीमद्देवीभागवत के सातवें स्कंध के अध्याय 36 में देवी दुर्गा, राजा हिमालय को उपदेश देती हैं: 

“हे राजन, सब बातें छोड़ दो, केवल ब्रह्म का ध्यान करो, उसका नाम ओम है, जिसके स्मरण से ब्रह्मलोक प्राप्त होगा।”  

Shri Ram Ayodhya: यहाँ दुर्गा जी स्पष्ट करती हैं कि वे स्वयं पूर्ण परमात्मा नहीं हैं, बल्कि ब्रह्म (काल) की भक्ति करने को कहती हैं। लेकिन श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 8 श्लोक 13 व 16 में गीता ज्ञानदाता (काल ब्रह्म) कहता है कि ओम मंत्र के जाप से ब्रह्मलोक तो प्राप्त होता है, पर वहाँ भी गए हुओं का जन्म-मृत्यु का चक्र बना रहता है। अर्थात, काल ब्रह्म भी पूर्ण मोक्ष नहीं दे सकता। यानि यह भी पूर्ण परमात्मा नहीं है बल्कि इसने गीता अध्याय 15 श्लोक 17 में अपने से अन्य को उत्तम पुरुष, अविनाशी परमात्मा बताया है।

Shri Ram Ayodhya: वशिष्ठ जी द्वारा रामचंद्र का नामकरण

पाठकों, एक विचारणीय विषय और है कि जब वेदों में राम नाम है ही नहीं तो फिर वशिष्ठ जी ने दशरथ पुत्र का नाम रामचंद्र क्यों रखा?

इसका जबाब यह है कि कबीर परमात्मा चारों युगों में आते हैं:

सतयुग में सत सुकृत कह टेरा, त्रेता नाम मुनींद्र मेरा।

द्वापर में करुणामय कहाया, कलयुग नाम कबीर धराया।। – कबीर सागर, बोधसागर खंड, अध्याय- भवतारण बोध, पृष्ठ 55

Shri Ram Ayodhya: और चारों युगों में वही सत्यज्ञान बताते हैं जो कलयुग में करीब 600 वर्ष पहले बताया था कि 

राम नाम रटते रहो, जब लग घट में प्राण।

कबहु तो दीन दयाल के, भनक पड़ेगी कान।।

तथा कहते हैं आदिराम कबीर साहिब जी हैं। लेकिन ऋषियों ने राम नाम की महिमा तो सुनी और परमात्मा को राम के नाम से जानना भी प्रारंभ कर दिया लेकिन यह विश्वास नहीं किया कि वास्तविक राम कबीर जी ही हैं जिन्हें वेदों में कविर्देव कहा गया है। और वेदों में परमात्मा के लक्षणों का वर्णन मिलता है जिसके आधार पर वशिष्ठ जी ने दशरथ पुत्र का नाम रामचन्द्र रख दिया। 

Shri Ram Ayodhya: जिसका प्रमाण रामचरित मानस के बालकांड, दोहा 196-197 में है। जिसमें वशिष्ठ जी राजा दशरथ के चार पुत्रों का नामकरण करते हैं:

  1. रामचंद्र: क्योंकि परमात्मा आनंद सिंधु और त्रिलोक को विश्राम देने वाला है।  
  2. भरत: क्योंकि परमात्मा विश्व का भरण-पोषण करता है।  
  3. शत्रुघ्न: क्योंकि परमात्मा के स्मरण से शत्रु नष्ट होते हैं।  
  4. लक्ष्मण: क्योंकि परमात्मा शुभ लक्षणों का धाम है।

वशिष्ठ जी ने ये नाम वेदों में वर्णित परमात्मा के गुणों के आधार पर रखे, जो कबीर साहिब ने सतयुग में सतसुकृत रूप में बताए थे। लेकिन, ब्रह्मा जी के अधूरे ज्ञान के कारण, वशिष्ठ जी ने यह मान लिया कि विष्णु जी (रामचंद्र के रूप में) पूर्ण परमात्मा हैं। 

Shri Ram Ayodhya: आदिराम (पूर्ण परमात्मा) कौन हैं?

पाठकों, यदि रामचंद्र को केवल “राम” नाम के कारण परमात्मा मान लिया जाए, तो भरत अर्थात विश्व पोषक, शत्रुघ्न अर्थात शत्रु नाशक और लक्ष्मण अर्थात शुभ लक्षणों का धाम भी परमात्मा हो जाएँगे। लेकिन, वेद और गीता सिद्ध करते हैं कि ये गुण केवल परम अक्षर ब्रह्म, कबीर साहिब में हैं। 

जैसे वेदों में स्पष्ट है कि पूर्ण परमात्मा माता के गर्भ से जन्म नहीं लेता (ऋग्वेद मण्डल 10 सूक्त 4 मंत्र 3 व मंडल 9 सूक्त 93 मंत्र 2), बल्कि उसकी परवरिश कुंवारी गाय के दूध से होती है (ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 1 मंत्र 9)। और यह लीला कबीर साहेब ने ही की है। जिसका प्रमाण कबीर सागर, बोधसागर खंड, अध्याय – अगम निगम बोध, पृष्ठ 34, 41 तथा कबीर सागर, अध्याय- ज्ञानसागर, पृष्ठ 74-75 में है। साथ ही, सूक्ष्मवेद में लिखा है:

अविगत राम कबीर है, चकवै अविनाशी।

ब्रह्मा विष्णु वजीर हैं, शिव करत खवासी।। – अमरग्रन्थ साहिब, अध्याय – अथ राग बिलावल, शब्द 21

निर्गुण सर्गुण दो धारा है। आदि राम कबीर तो न्यारा है। – अमरग्रन्थ साहिब, अध्याय – अथ शब्दी, पृष्ठ 462 

इससे सिद्ध होता है कि कबीर साहिब ही अविनाशी, सृष्टि रचनहार और पूर्ण परमात्मा हैं।

निष्कर्ष

रामचरितमानस, श्रीमद्देवीभागवत पुराण, गीता और सूक्ष्म वेद के प्रमाणों से स्पष्ट है कि ऋषि वशिष्ठ, ब्रह्मा जी के अधूरे ज्ञान के कारण, यह मान बैठे कि विष्णु जी (रामचंद्र के रूप में) पूर्ण परमात्मा हैं। वशिष्ठ जी ने राम (Shri Ram Ayodhya) नाम की महिमा सुनी, जो कबीर साहिब ने सतयुग में सतसुकृत रूप में दी थी, पर वे यह नहीं समझ पाए कि आदि राम कबीर साहिब हैं। ब्रह्मा, विष्णु, दुर्गा और काल ब्रह्म भी पूर्ण परमात्मा नहीं हैं। केवल कबीर साहिब ही परम अक्षर ब्रह्म हैं, जिनकी भक्ति से पूर्ण मोक्ष संभव है। संत रामपाल जी महाराज के तत्वज्ञान से यह सत्य उजागर होता है।

पाठकों से निवेदन है कि शास्त्रों का अध्ययन करें और सत्य मार्ग अपनाएँ तथा ऐसी ही तथ्यात्मक और रोचक जानकारी जानने के लिए Factful Debates YouTube Channel देखिए।

Shri Ram Ayodhya: FAQs

क्या दशरथ पुत्र श्रीरामचंद्र पूर्ण परमात्मा हैं?

नहीं

ऋषि वशिष्ठ जी ने दशरथ पुत्र का नाम रामचंद्र क्यों रखा?

ऋषि वशिष्ठ जी ने गलत फहमी में विष्णु जी को पूर्ण परमात्मा मानकर उनके अवतार का नाम रामचन्द्र रख दिया था।

आदि राम (वास्तविक राम) कौन है जिसकी महिमा वेद गाते हैं?

कबीर साहिब जी।

Comments

No comments yet. Why don’t you start the discussion?

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *