Sankat Mochan Hanuman | भारतीय संस्कृति में कई महान व्यक्तित्व हुए हैं जिन्होंने हमारी जिंदगी को बहुत प्रभावित किया है। ऐसे ही दो महान व्यक्तित्व हैं: हनुमान जी और कबीर जी, जो अपने समय में अपनी लीलाओं के कारण बहुत प्रसिद्ध रहे हैं।
जहां एक तरफ हनुमान जी भगवान राम के सबसे वफादार भक्त माने जाते हैं। तो वहीं कबीर जी एक महान संत और कवि रहे हैं जिन्होंने अपनी कविताओं में जीवन के मूल्यों को उजागर किया है। दोनों ही अपने समय में बहुत प्रभावशाली थे और उनकी शिक्षाएँ आज भी हमें प्रेरित करती हैं।
लेकिन हनुमान जी बड़े हैं या कबीर जी? इस लेख में, हम हनुमान जी और कबीर जी की तुलना करेंगे और साथ ही, तुलना करेंगे कबीर जी के सबसे बड़े समर्थक “संत रामपाल जी महाराज” और अपने आप को हनुमान जी का पक्का भक्त कहने वाले अमित आचार्य जी की।
तो आइए जानते हैं आखिर कौन है असली संकट मोचन हनुमान (Sankat Mochan Hanuman) जी या कबीर जी?
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Sankat Mochan Hanuman: हनुमानजी के गुरु मुनीन्द्र (कबीर) जी
कबीर सागर (बोधसागर खंड), अध्याय – हनुमान बोध” के पृष्ठ 131 पर मुनींद्र रूप में आए कबीर परमात्मा और हनुमान जी का संवाद है। जिसमें हनुमान जी मुनींद्र रूप में आए कबीर परमात्मा से कहते हैं:
अहो स्वामी! मैं सब विधि जानी, तुम ही समरथ तुम ही ज्ञानी।
कहा अस्तुति तुम्हारी की जय,अमृत वचन सुनी हम भीजे।
सब संदेह मिटायो मोरा, जन्म जन्म का मिट यो झकझोरा।
सुख सागर अमर घर न्हा भले सदगुरु मोहि दर्शन दहा।
इन वाणियों के माध्यम से हनुमान जी मुनीन्द्र रूप में आए कबीर परमात्मा जी की महिमा का बखान कर रहे हैं। स्वयं हनुमानजी कबीर साहेब जी से कहते है कि, “क्षमा कीजिए भगवान, हम तो तुच्छ बुद्धि जीव हैं, कृपया आप मुझे अपना संपूर्ण ज्ञान समझाइए और सत भक्ति प्रदान कीजिए।”
भक्त की अधीनता का किया सुंदरकाण्ड ने समर्थन
महंत अमित आचार्य, हनुमान जी के भक्त हैं। यह कबीर जी पर व्यंग्य कसा है कि, “कबीर तो अपने आप को राम का कुत्ता कहता है और तुम उसकी पूजा करते हो उसको परमात्मा बताते हो।”
जबकि रामचरित मानस, सुंदरकांड दोहा 6 की चौपाई 3-4 तथा दोहा 7 इस बात को प्रमाणित करने के लिए काफी है। जिसमें हनुमान जी विभीषण से कहते हैं कि, “हे सखा, सुनिए मैं ऐसा अधम और नीच हूं। पर श्री रामचंद्र जी ने तो मुझ पर भी कृपा ही की है।” ऐसा कह कर हनुमान जी रामचंद्र जी के प्रेम में रोने लगे।
राम चरित मानस ने भी यह स्पष्ट किया है कि हनुमानजी एक सच्चे प्रभु भक्त थे और भक्त के अंदर आधिनी होनी चाहिए। तभी उसका इष्ट प्रसन्न होता है अपने इष्ट को प्रसन्न तथा खुश करने के लिए ही तो साधना की जाती है।
Sankat Mochan Hanuman: जिस प्रकार हनुमान जी ने यह बताया है कि एक भक्त को कैसे रहना चाहिए, उसका कैसा भाव होना चाहिए। ठीक इसी प्रकार परमात्मा कबीर जी ने भी हम सबको एक परम भक्त का अभिनय करके दिखाया है। कबीर साहिब जी कहते हैं:
कुत्ता हूं भगवान का, मोतिया मेरा नाम।
गले प्रेम की जेवड़ी, जहाँ खींचो वहाँ जाऊं।।
भावार्थ: हर भक्त का भगवान के प्रति यही भाव होना चाहिए कि जिस प्रकार एक कुत्ते का मालिक अपने कुत्ते को जैसे भी रखता है जो भी खाने को देता है व कुत्ता वैसे ही रहता है तथा खाता है। ठीक इसी प्रकार, भक्त को भी परमात्मा पर इतना विश्वास होना चाहिए कि परमात्मा जैसे भी रखेंगे मैं वैसे ही रहूंगा और आधीन होकर भक्ति करूंगा।
गरीब, राजिक रमता राम की, रजा धरै जो शीश।
दास गरीब दर्श परस, जिस भेंटे जगदीश।।
अर्थात् परमात्मा की रजा में चलना पड़ेगा, उनके आदेश में उनकी मर्यादा में रहकर आधीन भाव से भक्ति करनी पड़ेगी, तभी परमात्मा की प्राप्ति हो सकती है।
Sankat Mochan Hanuman: अविनाशी कौन, राम या आदिराम कबीर जी?
महंत अमित आचार्य जी भगवान विष्णु को तथा उन्हीं के अवतार भगवान श्री कृष्ण जी तथा भगवान श्री राम को पूर्ण ब्रह्म परमात्मा मानकर भक्ति करते हैं।
यह महंत अमित आचार्य तथा ऐसे ही और भी बहुत सारे संत, महंत,आचार्य और शंकराचार्य श्री ब्रह्मा जी, श्री विष्णु जी तथा श्री शिव जी को अविनाशी कहते हैं। इनका यह भी मानना है कि इन तीनों देवताओं का कोई माता-पिता नहीं है, यहीं सर्वे सर्वा है।
Sankat Mochan Hanuman: जबकि, संक्षिप्त श्रीमद्देवीभागवत के तीसरे स्कन्ध अध्याय 4-5 पर विष्णु जी देवी दुर्गा से कहते हैं कि,
तुम शुद्ध स्वरूपा हो, यह सारा संसार तुम्हीं से उद्भासित हो रहा है, मैं विष्णु, ब्रह्मा और शंकर हम सभी तुम्हारी कृपा से ही विद्यमान हैं। हमारा आविर्भाव अर्थात जन्म और तिरोभाव अर्थात मृत्यु हुआ करता है अर्थात् हम तीनों देव नाशवान हैं, केवल तुम ही नित्य हो, जगत जननी हो, प्रकृति देवी हो।
फिर आगे श्रीमद्देवीभागवत के इसी प्रकरण में भगवान् शंकर बोले-
देवी! यदि महाभाग विष्णु तुम्हीं से प्रकट हुए हैं तो उनके बाद उत्पन्न होने वाले ब्रह्मा भी तुम्हारे ही बालक हुए। फिर मैं तमोगुणी लीला करने वाला शंकर क्या तुम्हारी संतान नहीं हुआ अर्थात् मुझे भी उत्पन्न करने वाली तुम्हीं हो। शिवे ! सम्पूर्ण संसार की सृष्टि करने में तुम बड़ी चतुर हो। इस संसार की सृष्टि, स्थिति और संहार में तुम्हारे गुण सदा समर्थ हैं। उन्हीं तीनों गुणों से उत्पन्न हम ब्रह्मा, विष्णु एवं शंकर नियमानुसार कार्य में तत्पर रहते हैं।
इससे यह बात तो स्पष्ट हुई कि तीनों देवता ब्रह्मा, विष्णु और शिव नाशवान हैं तथा ये नियम से बंधे हैं यानि ये आपके प्रारब्ध में परिवर्तन नहीं कर सकते अर्थात ये तीनों देवता संकट मोचन भी नहीं हुए। साथ ही, इस उल्लेख से पता चलता है कि इन तीनों देवताओं की माता देवी दुर्गा है।
Sankat Mochan Hanuman: गीता ज्ञान दाता भी नाशवान!
गीता जी का ज्ञान भगवान विष्णु उर्फ़ श्रीकृष्ण जी के शरीर में प्रवेश करके ब्रह्मा, विष्णु, शिव के पिता “ज्योति निरंजन” काल ब्रह्म ने बोला था, जिसकी विस्तृत जानकारी आपको “खुल गया राज गीता का” में पढ़ने को मिलेगा।
गीता ज्ञान दाता ब्रह्म, गीता अध्याय 4 श्लोक 5 और गीता अध्याय 2 श्लोक 12 में अपने को नाशवान बताता है। जबकि गीता अध्याय 15 श्लोक 17 में कहता है कि
उत्तम पुरुष तो अन्य ही है जो तीनों लोकों में प्रवेश करके सबका धारण पोषण करता है, वही अविनाशी परमेश्वर परमात्मा कहा गया है।
तथा गीता अध्याय 2 श्लोक 17 में कहा है कि
वास्तव में अविनाशी तो उसको जान जिसको मारने में कोई भी सक्षम नहीं है।
यानि जो परमेश्वर स्वयं अविनाशी है वही हमारे संकटों का नाश कर सकता है और वहीं वास्तव में संकट मोचन है।
Sankat Mochan Hanuman: परम अक्षर ब्रह्म कौन?
वहीं, अर्जुन ने गीता अध्याय 8 श्लोक 1 में पूछा है कि हे प्रभु! जो आपने गीता अध्याय 7 श्लोक 29 में तत् ब्रह्म कहा है वह तत् ब्रह्म कौन है? अर्जुन के इस प्रश्न का उत्तर गीता ज्ञान दाता ने गीता अध्याय 8 श्लोक 3 में दिया है कि वह परम अक्षर ब्रह्म है।
जिसके विषय में पवित्र यजुर्वेद अध्याय 40 मंत्र 8 में कहा है कि
स पय्यैगाच्छुक्रर्मकायम॑व्रणम॑स्नाविर शुद्धमर्पापविद्धम् ।
कविर्भेनीषी परिभूः स्वयम्भूयर्थीथातथ्यतोऽ अर्थान्व्यदधाच्छाश्वतीभ्यः सर्माभ्यः ॥8॥
अर्थात जिस परमेश्वर की सर्व प्राणियों को चाह है, वह कविर अर्थात कबीर परमेश्वर पूर्ण विद्वान है। वह सर्व का मालिक सर्वोपरि सत्यलोक में विराजमान है। उस परमेश्वर का तेजपुंज का स्वयं प्रकाशित शरीर है। जो शब्द रूप अर्थात अविनाशी है। वही कविर्देव (कबीर परमेश्वर) है जो सर्व ब्रह्मण्डों की रचना करने वाला, सर्व ब्रह्मण्डों का रचनहार, स्वयं प्रकट होने वाला तथा वास्तव में (शाश्वतिभः) अविनाशी है। जिसके विषय में वेद वाणी द्वारा भी जाना जाता है कि परमात्मा साकार है तथा उसका नाम कविर्देव अर्थात् कबीर प्रभु है।
यह भी पढ़ें: कबीर को किसने बनाया भगवान।
वहीं, अथर्ववेद काण्ड 4 अनुवाक 1 मंत्र 7 में कहा है कि
योऽथर्वाणं पित्तरं देवबन्धुं बृहस्पतिं नमसाव च गच्छात्।
त्वं विश्वेषां जनिता यथासः कविर्देवो न दभायत् स्वधावान्।।7।।
अनुवाद:- जो अचल अर्थात् अविनाशी जगत पिता भक्तों का वास्तविक साथी अर्थात् आत्मा का आधार जगतगुरु तथा विनम्र पुजारी अर्थात् विधिवत् साधक को सुरक्षा के साथ सतलोक गए हुओं को अर्थात् जिनका पूर्ण मोक्ष हो गया, वे सत्यलोक में जा चुके हैं। उनको सतलोक ले जाने वाला सर्व ब्रह्माण्डों की रचना करने वाला जगदम्बा अर्थात् माता वाले गुणों से भी युक्त काल की तरह धोखा न देने वाले स्वभाव अर्थात् गुणों वाला ज्यों का त्यों अर्थात् वैसा ही वह आप (कविर्देवः) कविर्देव है अर्थात् भाषा भिन्न इसे कबीर परमेश्वर भी कहते हैं।
Sankat Mochan Hanuman: वहीं, संत गरीबदास जी और गुरुनानक देव जी ने कहा है:
गरीब, अनंत कोटि ब्रह्मंड का, एक रती नहीं भार।
सतगुरू पुरुष कबीर हैं, कुल के सिरजनहार।।
गरीब, परमेश्वर एक कबीर है, दूजा नहीं आधार।
दास गरीब सकल सृष्टि का, यो ही सिरजन हार।।
गरीब, मात पिता जाके नहीं, नहीं जन्म प्रमाण।
यौह पूर्ण ब्रह्म कबीर है, करता हंस अमान।। – संत गरीबदास जी महाराज
यक अर्ज गुफतम पेश तो दर कून करतार।
हक्का कबीर करीम तू बेएब परवरदिगार।
नानक बुगोयद जनु तुरा तेरे चाकरा पाखाक।। – गुरुनानक जी (गुरुग्रन्थ साहिब पृष्ठ 721)
जिससे स्पष्ट होता है कि आदिराम यानि सबसे पहला अविनाशी परमात्मा, परम अक्षर ब्रह्म, जिसने सर्व सृष्टि को बनाया वह कबीर परमेश्वर है। और ये ही हमारे वास्तव में रक्षक हैं यानि संकट मोचन हैं।
Sankat Mochan Hanuman: निष्कर्ष
इन सभी प्रमाणों से सिद्ध हो जाता है कि
- महंत अमित आचार्य तथा इसी के जैसे तथा कथित धर्मगुरुओं का अध्यात्म ज्ञान शून्य है। ये केवल बिना सिर पैर की बातें करके अज्ञान फैला रहे हैं।
- इस महंत अमित आचार्य को रामचरित मानस, गीता, वेद, पुराणों का भी ज्ञान नहीं है। जबकि संत रामपाल जी महाराज का ज्ञान सर्व धर्मग्रंथों से प्रमाणित ज्ञान है।
- ब्रह्मा, विष्णु, शिव तथा इनके अवतार तथा गीता ज्ञानदाता ब्रह्म नाशवान हैं।
- अविनाशी परमात्मा तो आदिराम कबीर जी हैं, जिन्हें वेदों में कविर्देव और संतों ने अपनी स्थानीय भाषा कबीर परमेश्वर कहा है तथा गीता में जिसे परम अक्षर ब्रह्म कहा गया है।
- हनुमान जी भक्त थे वे संकट मोचन नहीं हैं बल्कि संकट मोचन तो कबीर परमेश्वर जी हैं।
Sankat Mochan Hanuman: FAQs
हनुमान जी के गुरु कौन थे?
हनुमान जी के गुरु मुनींद्र ऋषि के रूप में कबीर परमात्मा थे, जो त्रेतायुग में आए थे।
गीता अध्याय 7 श्लोक 29 में वर्णित तत ब्रह्म कौन है?
परम अक्षर ब्रह्म कबीर जी हैं।
हमारे पवित्र वेदों के अनुसार, अविनाशी प्रभु अर्थात् आदिराम कौन है?
पूर्ण परमात्मा कबीर जी
संकट मोचन कौन प्रभु है?
संकट मोचन कबीर परमेश्वर जी हैं।