Rambhadut Nitin Das के झूठ का पर्दाफाश सतनाम, जाप-सुमिरण...

सतनाम, जाप-सुमिरण और आत्मा-परमात्मा; संत रामपाल जी ने किया नितिन दास (Rambhadut Nitin Das) की भ्रामक बातों का खुलासा!

Rambhadut Nitin Das: यह लेख एक ऐसे व्यक्ति, नितिन दास और उनके अज्ञान और धार्मिक विवाद पर आधारित है, जिसमें उनके द्वारा किए गए गलत विचारों, झूठे दावे और आध्यात्मिक मार्ग पर फैलाए गए भ्रम का पर्दाफाश किया गया है। यह चर्चा संत रामपाल जी महाराज और कबीर साहिब जी के तत्वज्ञान पर आधारित है। 

इस लेख में, हम नितिन दास के अज्ञान और संत रामपाल जी महाराज के सत्यज्ञान के बीच के अंतर को विस्तार से समझेंगे। लेख में नितिन दास (Rambhadut Nitin Das) का दोगलापन, उनके द्वारा दिए गए झूठे नाम मंत्र और असल ज्ञान से दूर की बातें उजागर की गई हैं।

Rambhadut Nitin Das कौन है?

नितिन दास स्वयं स्वीकार किया है कि कालिंजर स्थान पर मेरे पंथ के प्रथम गुरु मदन पति को कबीर साहिब जी मिले थे। अर्थात् नितिन दास, रंभदूत मदनपति पंथ का प्रचारक है, जिसे कबीर परमेश्वर जी ने अपने सबसे बड़े द्रोही, रंभदूत के रूप में बताया है। 

कबीर सागर के अध्याय – अनुराग सागर, पृष्ठ 130-133 में कबीर जी ने स्पष्ट कहा है कि रंभदूत, कबीर जी की वाणियों को सही बोलता है लेकिन उनका अर्थ अपनी अज्ञानता के अनुसार गलत कर देता है, जिससे जीवों को गुमराह किया जाता है। 

नितिन दास भी इसी परंपरा का पालन करता है। नितिन दास (Rambhadut Nitin Das) मदनपति, वाणी तो कबीर जी की बोलता है लेकिन उन वाणियों का अर्थ अपने अज्ञान अनुसार करता है।

Rambhadut Nitin Das मदनपति का अज्ञान

  1. नितिन दास पहले कहता है “सत्यनाम कोई नाम नहीं है, यह हमारा असली स्वरूप है”, लेकिन फिर कहता है कि “सतनाम नाम भी है।” 
  2. नितिन दास ने यह भी दावा किया है कि “आत्मा और परमात्मा एक ही हैं,” फिर अन्य प्रवचन में कहता है कि “आत्मा, परमात्मा की शक्ति से चल रही है।”
  3. नितिन दास (Rambhadut Nitin Das) के अनुसार, जाप और सुमिरण में अंतर है। सुमिरण यानि याद करना और जाप यानि रटना।
  4. यह नितिन दास, एक ओर कहता है कि सुरत यानि आत्मा शरीर से निकलकर सतलोक को जाती है और दूसरी तरफ यह कहता है कि कोई लोक नहीं हैं।

जिससे स्पष्ट होता है कि नितिन दास दोगली बात करता है, जो उसके अज्ञान को दर्शाता है।

Rambhadut Nitin Das ने किया कबीर साहेब का अपमान!

नितिन दास ने अपनी धार्मिक चर्चाओं में कई बार संत रामपाल जी और कबीर साहिब जी के बारे में अपशब्दों का इस्तेमाल किया है। उन्होंने कबीर साहिब जी को अपमानित किया और उनका गलत अर्थ प्रस्तुत किया। इसके बावजूद, नितिन दास अपने प्रवचनों में कबीर साहिब जी की वाणियों का इस्तेमाल करता है, जो इस बात को स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि वह खुद कबीर साहिब जी के ज्ञान से परिचित नहीं है और उन्हें अपनी राजनीति और स्वार्थ के लिए गलत तरीके से इस्तेमाल करता है।

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संत रामपाल जी का सत्य ज्ञान

दूसरी ओर, संत रामपाल जी महाराज एक पूर्ण संत हैं जो कबीर जी के सत्य ज्ञान को सही ढंग से समझाते हैं। उन्होंने कबीर सागर और अन्य शास्त्रों का गहराई से अध्ययन किया है और उनकी वाणियों का सही अर्थ समझाया है। 

जाप और सुमिरण में क्या कोई अंतर है?

Rambhadut Nitin Das: संत रामपाल जी महाराज और कबीर साहिब जी के अनुसार, जाप और सुमिरण एक ही हैं। नाम का उच्चारण करना और उसे याद करना दोनों एक ही बात है। क्योंकि जब हम जाप करते हैं तो स्वतः ही परमात्मा की याद आ जाती है। 

गीता अध्याय 8 श्लोक 13 में गीता ज्ञान दाता ने स्वयं कहा है कि मुझ ब्रह्म का एक ॐ मंत्र (नाम) है, जिसका अंतिम साँस तक सुमरण (जाप) करने से, मुझसे मिलने वाली गति को प्राप्त होता है। यह बात यह नितिन दास स्वयं स्वीकार करता है।

दूसरा कबीर साहेब ने अपने दोहे व साखियों में कहा है:

अजर अमर इक नाम है, सुमिरन जो ध्यावै।

बिनहीं मुख के जप करो, नहिं जीभ डुलावो।।

इसमें कबीर साहेब ने स्पष्ट कर रखा है कि जाप और सुमिरण एक ही है।

Rambhadut Nitin Das: सतनाम क्या है?

संत रामपाल जी महाराज ने बताया है कि सतनाम एक विशेष मंत्र है जिसके जाप से मोक्ष प्राप्त होता है, जैसा कि संत गरीबदास जी ने कहा है:

गरीब, सब गामन सिर गाम है, सब देशन सिर देश।

सतनाम अजपा जप, सतलोक प्रवेश।।

सतनाम स्मरण करे, धर्म ध्वजा फैरावै।

गरीबदास मुक्ति पद, सतगुरू शरणा पावै।।

Rambhadut Nitin Das: इससे यह बात स्पष्ट होती है कि सतनाम एक संकेतिक मंत्र है जिसका जाप अर्थात सुमिरण करना है जिससे मुक्ति पद अर्थात सतलोक जा सकते हैं। इन वाणियों में संत गरीबदास जी ने यह भी स्पष्ट किया है कि जाप और सुमिरण (स्मरण) एक ही है।

वही, कबीर साहेब ने सतनाम के विषय में कहा है:

कबीर, जब ही सत्यनाम हृदय धर्यो, भयो पाप को नाश।

मानो चिंगारी अग्नि की, पड़ी पुराणे घास।।

सरलार्थ:- कबीर परमेश्वर जी ने कहा है कि जिस समय साधक को सत्यनाम अर्थात् वास्तविक नाम मंत्र मिल जाता है और साधक हृदय से सत्यनाम का स्मरण करता है तो उसके पाप ऐसे नष्ट हो जाते हैं जैसे हजारों टन सूखे पुराने घास में अग्नि की एक छोटी-सी चिंगारी लगा देने से वह जलकर भस्म हो जाता है। उसी प्रकार सत्यनाम के स्मरण से साधक का पाप नाश हो जाता है जो दुखों का मूल है। पाप नाश हुआ तो साधक सुखी हो जाता है।

इससे यह बात स्पष्ट होती है कि सतनाम, एक मंत्र है जिसके स्मरण, जाप से साधक के पाप नाश होते हैं, उसे सुख की प्राप्ति होती है और जो मोक्ष प्राप्ति में सहायक है।

क्या आत्मा और परमात्मा एक ही हैं?

Rambhadut Nitin Das: संत रामपाल जी महाराज ने यह भी स्पष्ट किया है कि आत्मा और परमात्मा अलग-अलग हैं और आत्मा को परमात्मा ने उत्पन्न किया है जो परमात्मा की शक्ति से चल रही है। घट यानि शरीर में परमात्मा नहीं, बल्कि उस परमात्मा की शक्ति से जीवात्मा शरीर में बोलती है जोकि परमात्मा का अंश है।

गरीब, आत्मा और परमात्मा, एकै नूर जहूर।

बीच में झांई कर्म की, तातै कहिये दूर।।

इस वाणी में संत गरीबदास जी ने स्पष्ट किया है कि आत्मा तथा परमात्मा की एक जैसी छवि है। बीच में पाप कर्मों का (झांई) मैल है। इसलिए परमात्मा जीव से दूर कहा जाता है। फिर आगे उन्होंने और स्पष्ट किया है:

गरीब, आत्मा रब्ब का नूर है, परमात्मा ला जवाब।

धरणि आकाश नहीं जद होते, काजी नहीं किताब।।

गरीब, चंद सूर जद पौन न पानी, परमात्म आप सही थे।

उत्पत्ति प्रलय कोटि गई जद, तख्त-खास रही थे।।

गरीब, व्याभिचारिणी भई आत्मा, नेह काल से लगाया।

अपने कर्मों के कारणे, फिर फिर अवतर आया।।

Rambhadut Nitin Das: वही कबीर परमेश्वर ने धर्मदास जी को सतलोक दिखाकर वापिस छोड़ा, तो धर्मदास जी ने सतलोक का वर्णन करते हुए हंस आत्मा और परमात्मा का भेद बताते हुए कबीर सागर, अध्याय – ज्ञान प्रकाश (बोधसागर खंड), पृष्ठ 57 में कहा है:

षोडश रवि हँसन छबि मोहा। देह प्राण शुभ अमृत सोहा।।

एक रोम रवि शशि कोटीशा। नख कोटिन्ह विधु मलिन रवीशा।।

पुरुष प्रकाश सतलोक अँजोरा। तहां न पहुँच निरञ्नन चोरा।।

उपरोक्त प्रमाण आत्मा और परमात्मा में स्पष्ट भेद बताते हैं।

Rambhadut Nitin Das: सतलोक व ऊपर के लोकों का ज्ञान

कबीर सागर, अध्याय – अनुराग सागर, पृष्ठ 14 में कबीर साहेब ने अपने को छुपाते हुए स्पष्ट किया है कि सतपुरुष ने सर्वप्रथम ऊपर के चार लोकों की रचना की। पढ़िए: 

सत्य परूष जब गुप्त रहाये। कारण करण नहीं निरमाये।।

प्रथमहिं पुरूष शब्द परकाशा। दीप लोक रचि कीन्ह निवासा।।

चारि कर सिंहासन कीन्हा। तापर पुहुप दीपकर चीन्हा।।

पुरूष कला धरि बैठे जहिया। प्रगटी अगर वासना तहिया।।

भावार्थ: सतपुरुष अर्थात् अविनाशी परमेश्वर गुप्त रहते थे। उस समय कुछ भी रचना नहीं की थी। सर्वप्रथम परमेश्वर ने एक वचन से सर्व लोकों तथा द्वीपों की रचना की। फिर उन लोकों में स्वयं निवास किया और द्वीपों में अपने अंश यानि वचन से उत्पन्न पुत्रों को रहने की आज्ञा दी। सर्वप्रथम सतपुरुष जी ने ऊपर के चार अविनाशी लोकों (अकह/अनामी लोक, अगम लोक, अलख लोक व सत्यलोक) की रचना की। इन चारों लोकों की रचना करके परमेश्वर ने प्रत्येक लोक में कमल के फूल के आकार के सिंहासन की रचना करके एक सम्राट के समान मुकुट पहनकर ऊपर छत्र तानकर महाराजाओं की तरह बैठ गए।

साथ ही, कबीर जी ने कबीर सागर, अध्याय – ज्ञान बोध (बोधसागर खंड), पृष्ठ 29 में स्वयं कहा है: 

हम हैं सतलोक के बासी। दास कहाय प्रकटे काशी।।

कलियुग में काशी चलि आए। जब हमरे तुम दर्शन पाये।।

Rambhadut Nitin Das: वहीं, कबीर सागर, अध्याय – कबीर बानी (बोधसागर खंड), पृष्ठ 102-103, कबीर सागर, अध्याय – अमर मूल (बोधसागर खंड), पृष्ठ 202-203 में सतलोक, सतपुरुष का विस्तृत विवरण मिलता है। इसके अलावा, कबीर साहेब ने कबीर सागर, अध्याय – ज्ञान प्रकाश (बोधसागर खंड), पृष्ठ 23 में कहा है:

सत्य पुरूष वह सतगुरू आहीं। सत्यलोक वह सदा रहाहीं।।

इससे यह साबित होता है कि ऊपर सतलोक, अनामी लोक आदि सर्व लोक भी हैं।

Rambhadut Nitin Das: निष्कर्ष

यह लेख नितिन दास के अज्ञान, दोगलेपन और कबीर साहिब जी की वाणियों के गलत अर्थ प्रस्तुत करने की प्रवृत्ति को उजागर करता है, जो उनके द्वारा फैलाए गए भ्रम और झूठे दावों को स्पष्ट करता है। नितिन दास, रंभदूत मदनपति पंथ का प्रचारक होने के नाते, कबीर साहिब जी की वाणियों का दुरुपयोग करता है और सत्यनाम, जाप-सुमिरण, आत्मा-परमात्मा जैसे विषयों पर विरोधाभासी बातें करता है। 

दूसरी ओर, संत रामपाल जी महाराज कबीर सागर और शास्त्रों के आधार पर सत्य ज्ञान प्रदान करते हैं, जिसमें सत्यनाम को मोक्ष का मंत्र, जाप और सुमिरण को एक समान तथा आत्मा और परमात्मा को अलग-अलग बताया गया है। कबीर साहिब जी और संत रामपाल जी के ज्ञान से यह स्पष्ट होता है कि सतलोक और अन्य अविनाशी लोकों का अस्तित्व है, जो साधक को सत्यनाम के जाप से प्राप्त हो सकता है। 

यह लेख साधकों को सही मार्गदर्शन और सत्य ज्ञान की ओर प्रेरित करता है, ताकि वे अज्ञान के भ्रमजाल से बच सकें और मोक्ष के पथ पर अग्रसर हों।

अंत में, यह कहा जा सकता है कि नितिन दास जैसे अज्ञानी लोगों से सावधान रहना चाहिए, क्योंकि वे भोले-भाले लोगों को गुमराह करते हैं। सच्चे आध्यात्मिक ज्ञान के लिए, संत रामपाल जी महाराज की शरण में जाना चाहिए, जो कबीर जी के सत्य ज्ञान को आगे बढ़ा रहे हैं। 
ऐसे ही आध्यात्मिक ज्ञान चर्चाओं को देखने के लिए Factful Debates यूट्यूब चैनल अवश्य देखें।

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