Ashutoshanand Giri Exposed: हिंदू धर्म को विश्व का सबसे प्राचीन धर्म माना जाता है, लेकिन सनातनी पूजा का पतन तब शुरू हुआ, जब भक्तों ने वेदों के यथार्थ ज्ञान को छोड़कर पुराणों और उपनिषदों पर आधारित शास्त्र-विरुद्ध कर्मकांडों को अपनाया। आज कई कथावाचक, जैसे आशुतोषानंद गिरि जी महाराज, श्राद्ध और पितृ पूजा को मोक्ष का मार्ग बताकर भक्तों को भटका रहे हैं।
इस लेख में हम आशुतोषानंद जी के दावों का शास्त्र-सम्मत खंडन करेंगे और संत रामपाल जी महाराज के तत्वज्ञान के आधार पर सनातनी पूजा के पतन का सत्य उजागर करेंगे।
Ashutoshanand Giri Exposed: श्राद्ध का शास्त्र-विरुद्ध दावा
आशुतोषानंद गिरि जी महाराज दावा करते हैं कि श्राद्ध कर्मकांड मोक्ष का मार्ग है और इसका उल्लेख पुराणों में है। उनके प्रमुख दावे निम्नलिखित हैं:
- मार्कंडेय पुराण में मदालसा और रुचि ऋषि के प्रसंग का हवाला देकर वे कहते हैं कि श्राद्ध से पितरों को तृप्ति और मोक्ष मिलता है।
- वे भक्तों को पितृ पूजा और कर्मकांड करने की सलाह देते हैं, दावा करते हुए कि यह सनातन धर्म का हिस्सा है।
लेकिन क्या ये दावे वेदों और गीता जैसे प्रमाणित शास्त्रों पर आधारित हैं? आइए, इनका शास्त्रीय विश्लेषण करें।
Ashutoshanand Giri Exposed: शास्त्र-विरुद्ध कर्मकांड का खंडन
संत रामपाल जी महाराज ने शास्त्रों के आधार पर आशुतोषानंद जी के दावों का खंडन किया है:
- गीता अध्याय 9 श्लोक 25: इस श्लोक में स्पष्ट है कि “देवताओं की पूजा करने वाले देवताओं को, पितरों की पूजा करने वाले पितरों को, भूतों की पूजा करने वाले भूतों को प्राप्त करते हैं, जबकि परमात्मा की भक्ति करने वाले परमात्मा को प्राप्त करते हैं।” इससे सिद्ध होता है कि श्राद्ध और पितृ पूजा से मोक्ष संभव नहीं, बल्कि जीव भूत-पितृ योनि में भटकता रहता है।
- मार्कंडेय पुराण, पृष्ठ 131: आशुतोषानंद जी (Ashutoshanand Giri Exposed) रुचि ऋषि के प्रसंग का हवाला देते हैं, लेकिन संत रामपाल जी बताते हैं कि रुचि ऋषि ने स्वयं स्वीकार किया कि वेदों में कर्मकांड को अविद्या (मूर्खता) कहा गया है। उनके पूर्वज, जो भूत-पितृ योनि में थे, स्वार्थवश रुचि को कर्मकांड के लिए प्रेरित करते हैं, जो यह सिद्ध करता है कि श्राद्ध से पितरों को मोक्ष नहीं मिला।
- गरुड़ पुराण- सारोद्धार, अध्याय 5 श्लोक 32-33, अध्याय 16 श्लोक 60, 70: इस श्लोक में स्पष्ट है कि कर्मकांड मोक्ष का मार्ग नहीं है। केवल तत्वज्ञान और शास्त्रानुकूल भक्ति से ही मोक्ष संभव है।
Ashutoshanand Giri Exposed: आशुतोषानंद जी के दावे पुराणों पर आधारित हैं, लेकिन संत रामपाल जी महाराज बताते हैं कि वेद और गीता ही परमात्मा द्वारा प्रदत्त प्रमाणित शास्त्र हैं। पुराण और उपनिषद ऋषियों के व्यक्तिगत अनुभव हैं, जो वेदों से मेल नहीं खाते और गीता अध्याय 16 श्लोक 23-24 में कहा गया है कि शास्त्र-विरुद्ध साधना से न सिद्धि, न सुख, न मोक्ष प्राप्त होता।
सनातनी पूजा के पतन का कारण
Ashutoshanand Giri Exposed: सनातनी पूजा का पतन तब शुरू हुआ, जब हिंदू समाज ने वेदों के यथार्थ ज्ञान को छोड़कर पुराणों और उपनिषदों पर आधारित मनमाने कर्मकांडों को अपनाया। संत रामपाल जी महाराज ने इस पतन के कारणों को स्पष्ट किया:
- वेदों का अज्ञान: तत्वदर्शी संत के अभाव में वेदों का सही अर्थ समझा नहीं गया।
- पुराणों का प्रभुत्व: पुराणों और उपनिषदों को शास्त्र मानकर कर्मकांड शुरू किए गए, जो वेद-विरुद्ध हैं।
- कर्मकांडी ब्राह्मणों का प्रभाव: आशुतोषानंद जैसे कथावाचक शास्त्र-विरुद्ध कर्मकांडों को बढ़ावा देकर भक्तों को भटका रहे हैं।
Ashutoshanand Giri Exposed: कबीर जी ने किया कर्मकांड का खंडन
संत रामपाल जी ने कबीर साहिब के एक प्रसंग का उल्लेख किया, जिसमें एक बार काशी (बनारस) में गंगा के घाट पर श्राद्ध के दिनों में कुछ पंडित अपने पितरों को जल दान करने के लिए सुबह-सुबह सूर्य की ओर मुख करके लोटे से गंगा का जल जमीन पर डाल रहे थे। कबीर जी, जो अंधविश्वास को तोड़ने के लिए जाने जाते थे, वहां पहुंचे और घुटनों तक पानी में खड़े होकर दोनों हाथों से गंगा का जल सूर्य की ओर तेजी से पटरी पर उछालने लगे।
यह देखकर सैकड़ों पंडित और लोग इकट्ठा हो गए। पंडितों ने पूछा, “कबीर जी, यह आप क्या कर रहे हैं?” कबीर जी ने जवाब दिया, “पहले तुम बताओ, तुम क्या कर रहे हो?” पंडित बोले, “हम अपने पितरों को, जो स्वर्ग में हैं, जल दान दे रहे हैं ताकि उन्हें यह जल मिले।”
कबीर जी ने कहा, “मैं भी अपनी एक किलोमीटर दूर बगीची की सिंचाई के लिए जल फेंक रहा हूँ।” यह सुनकर पंडित हंसने लगे और बोले, “यह असंभव है! यह जल तो यहीं रेत में समा गया। एक मील दूर कैसे पहुंचेगा?”
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Ashutoshanand Giri Exposed: कबीर जी ने तर्क दिया, “अगर तुम्हारा डाला जल करोड़ों मील दूर स्वर्ग पहुंच सकता है, तो मेरा जल एक मील दूर बगीची क्यों नहीं पहुंच सकता?” यह सुनकर पंडित चुप हो गए। कबीर जी ने आगे कहा, “तुम कहते हो कि तुम्हारे पितर स्वर्ग में हैं, फिर भी प्यासे हैं? अगर स्वर्ग में पानी ही नहीं, तो वह स्वर्ग नहीं, रेगिस्तान है! सच तो यह है कि पितर यमलोक में यमराज के अधीन होते हैं, जहां उन्हें निर्धारित भोजन-पानी मिलता है। जैसे पृथ्वी की जेल में कैदियों को भोजन मिलता है, वैसे ही यमलोक में भी कोई भूखा-प्यासा नहीं रहता।”
इस तर्क से पंडितों को अपनी कर्मकांड की सच्चाई समझ आ गई और ब्राह्मणों ने अपनी भूल स्वीकार की और कबीर जी से दीक्षा ली।
शास्त्र भी यही बताते हैं शास्त्र अनुकूल भक्ति से ही मोक्ष संभव है उसके लिए तत्वदर्शी संत की शरण जरूरी है। क्योंकि पवित्र गीता के अध्याय 4, श्लोक 34 में कहा गया है:
तत् विद्धि प्रणिपातेन परिप्रश्नेन सेवया।
उपदेक्ष्यन्ति ते ज्ञानं ज्ञानिनस्तत्त्वदर्शिनः।।
भावार्थ: उस तत्वज्ञान को समझ उन पूर्ण परमात्मा के वास्तविक ज्ञान व समाधान को जानने वाले संतों को भलीभाँति दण्डवत् प्रणाम करने से उनकी सेवा करने से और कपट छोड़कर सरलतापूर्वक प्रश्न करने से वे पूर्ण ब्रह्म को तत्व से जानने वाले अर्थात् तत्वदर्शी ज्ञानी महात्मा तुझे उस तत्वज्ञान का उपदेश करेंगे।
वहीं, विष्णु पुराण, तृतीय अंश, अध्याय 15 श्लोक 55-56 में बताया गया है कि श्राद्ध की श्रेष्ठ विधि है कि एक शास्त्रानुकूल साधना करने वाले योगी को भोजन करवाया जाए, जिससे यजमान और पितरों का पूर्ण मोक्ष संभव है। यहाँ योगी का अर्थ तत्वज्ञान पर आधारित साधक है (गीता अध्याय 2 श्लोक 53)।
Ashutoshanand Giri Exposed: निष्कर्ष
आशुतोषानंद गिरि जी जैसे कथावाचक शास्त्र विरुद्ध श्राद्ध और पितृ पूजा को बढ़ावा देकर सनातनी पूजा के पतन को और गहरा रहे हैं। दूसरी ओर, संत रामपाल जी महाराज ने वेदों, गीता के आधार पर सिद्ध किया कि कबीर साहिब ही पूर्ण परमात्मा हैं, जिनकी सतभक्ति से साधक और उनके पितरों का पूर्ण मोक्ष संभव है।
प्रिय पाठकों, शास्त्रों का अध्ययन करें और संत रामपाल जी महाराज की आदि सनातनी साधना को अपनाएँ। सत्य मार्ग पर चलकर अपने और अपने पितरों के जीवन का कल्याण करें। अधिक जानकारी के लिए Factful Debates यूट्यूब चैनल देखें।