Aniruddhacharya Ji vs Sant Rampal Ji : भारत में अनेक धर्मगुरु अध्यात्म के नाम पर नए-नए विचार प्रस्तुत करते रहते हैं, लेकिन इनमें से कुछ धर्मगुरु ऐसे भी हैं जो अपने प्रवचनों में निरंतर परिवर्तन करते रहते हैं। ऐसे में यह सवाल उठता है कि क्या वे वास्तव में मोक्ष दिलाने के योग्य हैं या केवल धन कमाने के लिए कथा सुना रहे हैं?
आज हम इस लेख में पाप नाशक और मोक्ष दायक मंत्र पर कथावाचक अनिरुद्धाचार्य जी (Aniruddhacharya Ji) महाराज और संत रामपाल जी महाराज (Sant Rampal Ji Maharaj) के विचारों पर चर्चा करेंगे। तो लेख को पूरा अवश्य पढ़ें।
इस लेख में आपको निम्न बातें जानने को मिलेंगी:
- पाप कर्म नाश हो सकते हैं या नहीं?
- पाप कर्म पर Aniruddhacharya Ji के विचार
- पाप कर्म : संत रामपाल जी (Sant Rampal Ji) के विचार
- क्या ब्रह्मा, विष्णु व शिव जी परमात्मा नहीं हैं?
- सभी पापों का नाश कैसे होता है?
- किन मंत्रों से होगा मोक्ष?
- Aniruddhacharya Ji के अनुसार मोक्ष मंत्र
- “ॐ तत् सत्” से होगा मोक्ष : संत रामपाल जी
पाप कर्म नाश हो सकते हैं या नहीं?
हर कोई अपने पाप कर्मों के नाश के लिए अनेक गुरुओं के पास जाते हैं। पहले वह गुरु कुछ विधि बताते हैं और जब उससे कोई लाभ नहीं होता, तो अंततः कह देते हैं कि इसे तो तुम्हें भोगना ही पड़ेगा। इसी प्रश्न के उत्तर को जानने के लिए हम अपने लेख में अनिरुद्धाचार्य जी (Aniruddhacharya Ji) और संत रामपाल जी महाराज के विचार ले रहे हैं। जिसे पढ़कर पाठकजन सच और झूठ का स्वयं निर्णय कर सकते हैं।
पाप कर्म पर Aniruddhacharya Ji के विचार
- कथावाचक अनिरुद्धाचार्य जी का कहना है कि दिनभर किए गए सभी पुण्य कर्मों का फल शाम को भगवान श्रीकृष्ण के चरणों में समर्पित कर देना चाहिए। अगर आप स्वयं को भगवान श्रीकृष्ण को समर्पित कर देंगे तो आपको पाप कर्मों का फल भोगना नहीं पड़ेगा, क्योंकि जो भगवान श्रीकृष्ण की शरण में आता है, वह पाप मुक्त हो जाता है।
- दूसरे प्रवचन में अनिरुद्धाचार्य जी (Aniruddhacharya Ji Maharaj) ने यह भी बताया कि प्रत्येक व्यक्ति को अपने कर्मों का फल भोगना पड़ता है। यहां तक कि भगवान श्रीराम (दशरथ पुत्र, अयोध्या) और माता सीता को भी अपने कर्मों का फल भोगने के लिए इस धरती पर अवतार लेना पड़ा।
पाप कर्म : संत रामपाल जी (Sant Rampal Ji) के विचार
संत रामपाल जी महाराज का कहना है कि श्रीमद्भगवत गीता और देवीभागवत पुराण के अनुसार, ब्रह्मा, विष्णु और शिव जी पूर्ण परमात्मा नहीं हैं। ये तीनों देवता नाशवान हैं। ये दुर्गा और ब्रह्म (काल) के संयोग से उत्पन्न हुए हैं। इसलिए इन्हें तथा इनके अवतारों को भी पाप कर्म भोगना पड़ा।
क्या ब्रह्मा, विष्णु व शिव जी परमात्मा नहीं हैं?
- श्रीमद्देवीभागवत पुराण (गीताप्रेस गोरखपुर, संपादक: हनुमान प्रसाद पोद्दार) के तीसरे स्कन्ध, पृष्ठ 123 पर उल्लेख है कि भगवान विष्णु ने दुर्गा की स्तुति करते हुए कहा कि वे, ब्रह्मा और शंकर, दुर्गा की कृपा से ही विद्यमान हैं और वे नित्य (अविनाशी) नहीं हैं।
- श्रीमद्देवीभागवत महापुराण (खेमराज श्रीकृष्णदास प्रकाशन मुंबई) तीसरा स्कन्ध, अध्याय 4, पृष्ठ 10, श्लोक 42 में स्पष्ट उल्लेख है “हे माता! ब्रह्मा, मैं तथा शिव तुम्हारे ही प्रभाव से जन्मवान हैं, हम नित्य (अविनाशी) नहीं हैं, फिर अन्य इन्द्रादि दूसरे देवता किस प्रकार नित्य हो सकते हैं। तुम ही अविनाशी हो, प्रकृति तथा सनातनी देवी हो।”
- श्रीमद्भगवत गीता के अध्याय 14 श्लोक 3-5 में विवरण है कि रजगुण ब्रह्मा, सतगुण विष्णु और तमगुण शिव जी की उत्पत्ति प्रकृति देवी दुर्गा और काल ब्रह्म से हुई है।
इन प्रमाणों के आधार पर, यह स्पष्ट है कि ब्रह्मा, विष्णु और शिव जी पूर्ण परमात्मा नहीं हैं, बल्कि नाशवान देवता हैं। यही कारण है कि भगवान विष्णु को भी श्रीराम और श्रीकृष्ण रूप में अपने पाप कर्मों को भोगना पड़ा तो अपने भक्तों के पाप कर्म ये कैसे समाप्त कर सकते हैं?
सभी पापों का नाश कैसे होता है?
संत रामपाल जी (Sant Rampal Ji) बताते हैं कि पूर्ण परमात्मा कबीर जी की भक्ति से पापों का नाश होता है। वेद भी इसकी गवाही देते हैं:
- यजुर्वेद अध्याय 5 मंत्र 32 : (कविरङ्घारिरसि बम्भारिरवस्यूरसि) पापों का शत्रु अर्थात् पाप नाशक और कर्मों के बन्धन में बंधे हुओं के बन्धन काटने वाला अर्थात् बन्दीछोड़ परमात्मा कबीर (कविर्देव) है।
- यजुर्वेद अध्याय 8 मंत्र 13 : परमात्मा घोर पाप का भी नाश कर सकता है।
- ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 82 मंत्र 1-2 : पापों का नाश करने वाला और सुखों की वर्षा करने वाला कविर्देव अर्थात् कबीर परमेश्वर है जो सतलोक में राजा के समान दर्शनीय है।
- सामवेद मंत्र संख्या 920 : उपासक के पाप कर्मों को नष्ट करके पवित्र करने वाला स्वयं कबीर परमेश्वर (कविर्देव) है।
जिससे यह स्पष्ट होता है कि कबीर परमात्मा की भक्ति से ही हमारे पाप नाश हो सकते हैं, जिससे हम सुखी हो सकते हैं। चलिए अब जानते हैं मोक्ष के विषय में अनिरुद्धाचार्य जी (Aniruddhacharya Ji) महाराज और संत रामपाल जी महाराज (Sant Rampal Ji Maharaj) के विचार।
यह भी पढ़ें: भगवान शिव अविनाशी हैं या कोई और भगवान?
Aniruddhacharya Ji vs Sant Rampal Ji: किन मंत्रों से होगा मोक्ष?
मोक्ष (Moksha) के लिए अलग-अलग संत अलग-अलग मंत्र बताते हैं, जिससे आज भी मानव मोक्ष मंत्रों की खोज में लगा हुआ है। लेकिन पाठकजन इस लेख को पढ़ने के बाद इस निर्णय में जरूर पहुँच जाएंगे कि शास्त्रों में मोक्ष मंत्र कौन सा है? तो चलिए मोक्ष मंत्र के विषय में जानते हैं अनिरुद्धाचार्य जी (Aniruddhacharya Ji) और संत रामपाल जी महाराज का क्या कहना है?
Aniruddhacharya Ji के अनुसार मोक्ष (Moksha) मंत्र
कथावाचक अनिरुद्धाचार्य जी महाराज ने अपने प्रवचनों में मोक्ष के लिए विभिन्न मंत्रों का उल्लेख किया है, लेकिन उनके विचार समय-समय पर बदलते रहे हैं। जैसे:-
- एक प्रवचन में अनिरुद्धाचार्य जी महाराज ने कहा कि “हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे”, “हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे” मंत्रों का जाप करने से मोक्ष प्राप्त किया जा सकता है।
- एक अन्य प्रवचन में अनिरुद्धाचार्य जी महाराज (Aniruddhacharya Ji Maharaj) ने “ओम नमो भगवते वासुदेवाय नमः” मंत्र को मोक्ष मंत्र बताया।
“ॐ तत् सत्” से होगा मोक्ष : संत रामपाल जी
संत रामपाल जी महाराज (Sant Rampal Ji Maharaj) का कहना है कि हमारे वेद, शास्त्र और गीता में जो मंत्र लिखे हैं, उन्हें पूर्ण गुरु से प्राप्त करके सही विधि से जाप करने से ही मोक्ष मिलेगा। क्योंकि वेदों के संक्षिप्त रूप गीता में प्रमाण मिलता है:
1. श्रीमद् भागवत गीता अध्याय 8 श्लोक 13
ओम्, इति, एकाक्षरम्, ब्रह्म, व्याहरन्, माम्, अनुस्मरन्,
यः, प्रयाति, त्यजन्, देहम्, सः, याति, परमाम्, गतिम्।।13।।
– गीता अध्याय 8 मंत्र 13
भावार्थ : मुझ ब्रह्म का तो यह ओम् (ॐ) एक अक्षर है, उच्चारण करते हुए स्मरण करने का जो शरीर त्याग कर जाता हुआ अर्थात् अंतिम समय में स्मरण करता हुआ मर जाता है वह परम गति पूर्ण मोक्ष को प्राप्त होता है।
लेकिन अपनी गति को तो गीता अध्याय 7 श्लोक 18 में गीता ज्ञान दाता ब्रह्म ने अनुत्तम कहा है। क्योंकि गीता अध्याय 8 श्लोक 16 के अनुसार ब्रह्मलोक पर्यंत सब लोक पुनरावृत्ति में हैं अर्थात् जन्म-मृत्यु में हैं। जिसका मतलब है कि ब्रह्म साधना यानि ॐ के जाप से पूर्ण मोक्ष नहीं हो सकता।
2. श्रीमद् भागवत गीता अध्याय 17 के श्लोक 23
ॐ, तत्, सत्, इति, निर्देशः, ब्रह्मणः, त्रिविधः, स्मृृतः,
ब्राह्मणाः, तेन, वेदाः, च, यज्ञाः, च, विहिताः, पुरा।।23।।
– गीता अध्याय 17 मंत्र 23
भावार्थ : ॐ मंत्र ब्रह्म का, तत् यह सांकेतिक मंत्र परब्रह्म का, सत् यह सांकेतिक मंत्र पूर्णब्रह्म का है, ऐसे यह तीन प्रकार के पूर्ण परमात्मा के नाम सुमिरण का आदेश कहा है और सृष्टि के आदिकाल में विद्वानों ने उसी तत्वज्ञान के आधार से वेद तथा यज्ञादि रचे। उसी आधार से साधना करते थे।
अर्थात् सच्चिदानंद घन ब्रह्म (पूर्ण ब्रह्म/परम अक्षर ब्रह्म) की भक्ति का मंत्र ‘‘ॐ तत् सत्‘‘ है। इन तीनों मंत्रों के जाप से वह परम गति प्राप्त होगी जो गीता अध्याय 15 श्लोक 4 में कही है कि जहाँ जाने के पश्चात् साधक फिर लौटकर संसार में कभी नहीं आते यानि उनका पूर्ण मोक्ष हो जाता है। इस मंत्र को समस्त पाप नाशक मंत्र भी कहा जाता है।
इस विषय में सूक्ष्मवेद में कहा गया है:
कबीर, जबही सत्यनाम हृदय धर्यो, भयो पाप को नाश।
मानों चिनगी अग्नि की, पड़ी पुराने घास।
निष्कर्ष
1. अनिरुद्धाचार्य जी महाराज के प्रवचन समय-समय पर बदलते रहते हैं, जिससे उनके अनुयायियों के लिए स्पष्ट दिशा प्राप्त करना मुश्किल हो सकता है। वहीं, संत रामपाल जी महाराज के विचार स्थिर, प्रमाणित और सुसंगत हैं।
2. Aniruddhacharya Ji का मानना है कि भगवान श्रीकृष्ण की शरण में जाने से पाप कर्मों का नाश हो सकता है। दूसरी ओर, संत रामपाल जी महाराज वेदों के अनुसार बताते हैं कि पूर्ण परमात्मा कबीर जी की भक्ति से ही पापों का नाश संभव है।
3. अनिरुद्धाचार्य जी द्वारा बताए गए मोक्ष मंत्र बदलते रहते हैं, जबकि संत रामपाल जी (Sant Rampal Ji) महाराज ने गीता से स्पष्ट किया कि “ॐ तत् सत्” मंत्र से ही सच्चा मोक्ष प्राप्त हो सकता है।
4. संत रामपाल जी महाराज ने अपने विचारों को वेद, पुराण और गीता के शास्त्रीय प्रमाणों से पुष्टि की है, जो उनकी विचारधारा की प्रामाणिकता को दर्शाता है। Aniruddhacharya Ji के विचारों में इस तरह की कोई भी शास्त्रीय पुष्टि नहीं दिखाई देती।
5. संत रामपाल जी महाराज (Sant Rampal Ji Maharaj) ने स्पष्ट किया कि ब्रह्मा, विष्णु और शिव जी पूर्ण परमात्मा नहीं हैं, बल्कि नाशवान देवता हैं। जिससे इनकी भक्ति से मोक्ष नहीं हो सकता, बल्कि पूर्ण मोक्ष केवल कबीर परमेश्वर की भक्ति से संभव है, जबकि अनिरुद्धाचार्य जी के प्रवचनों में इस तरह की स्पष्टता का अभाव है।
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